थायरॉइड गले में स्थित एक छोटी सी ग्रंथि होती है। यह ग्रंथि संतुलित मात्रा में थायरॉइड हार्मोंस उत्पन्न करके मेटाबॉलिज्म को सही बनाए रखती है। जब इस ग्रंथि में कोई गड़बड़ी होती है तो इसमें से बहुत अधिक मात्रा में या कुछ कम मात्रा में हार्मोंस निकलने लगते हैं, जिसकी वजह से थायरॉइड की समस्या शुरू होती है। थायरॉइड हार्मोंस जब शरीर में कम काम करें तो उस स्थिति में हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या उत्पन्न होती है।
रोग से जुड़े तथ्य
विश्व की 2 से 5 प्रतिशत महिलाएं थायरॉइड की बीमारी से ग्रस्त हैं। केवल भारत में ही 2 करोड़ थायरॉइडिज्म के मरीज हैं। थायरॉइड के हर 10 मरीजों में से 8 मरीज महिलाएं ही होती हैं। करीब 4 करोड़ भारतीय थायरॉइड से ग्रस्त हैं। मधुमेह के बाद इसकी सबसे बड़ी संख्या है। थायरॉइड संबंधी गड़बड़ियां भी उतनी ही व्यापक हैं, जितना मधुमेह लेकिन इनका पता नहीं लगता। थायरॉइड को ‘खामोश’ मर्ज कहा जाता है, क्योंकि इनके शुरुआती लक्षण इतने हल्के होते हैं कि मरीज को पता ही नहीं लगता कि कुछ गड़बड़ है। जब तक इन लक्षणों का पता चलता है वे अधिक गंभीर हो जाते हैं।
यह हैं लक्षण
* हाइपोथायरॉइड की शिकायत होने पर मरीज की कार्यक्षमता कम हो जाती है। मेटाबॉलिक रेट कम हो जाता है।
* रोगी को डिप्रेशन महसूस होता है। वह बात-बात में भावुक हो उठते हैं, कमजोरी, काम में अरु चि, थकान महसूस होने लगती है।
* जोड़ों में पानी आ जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में भी दिक्कत होती है।
* मांसपेशियों में हल्का सा पानी भर जाता है, जिसे मालेनजिया कहते हैं।
* चलते-फिरते हल्का दर्द होता है।
* बालों का झड़ना और पतला होना, चेहरा सूजा हुआ लगना, रूखी आवाज, बहुत धीरे-धीरे और वक्त लगाकर बात करना।
* कब्ज की शिकायत, नींद अधिक आना, लो ब्लड प्रेशर होना भी इसके कारण हैं।
* हृदय की झिल्ली में पानी जमा होने लगता है जिससे हृदय की क्रिया पर भी फर्क पड़ता है। इसे पैरीकॉर्डियल इन्फ्यूजन कहा जाता है।
* धड़कन की गति धीमी पड़ जाती है। प्रजनन क्षमता पर फर्क पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान अधिक खून जाता है। खून के थक्के अधिक आते हैं। मासिक चक्र नियमित नहीं रहता है। जब भी ऐसे लक्षण 20 से 40 उम्र की महिलाओं को महसूस हो तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। मोटापे से पीड़ित रोगियों को मालूम नहीं होता कि बहुत हद तक उनके मोटापे का जिम्मेदार थाइरॉइड हार्मोन असंतुलन है। वक्त पर इसका इलाज करा लिया जाए तो मोटापे और कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण किया जा सकता है और शरीर को बाकी दुष्प्रभावों से भी बचाया जा सकता है।
जरूरी है जांच
थायरॉइड ग्रंथि से कितने कम या ज्यादा मात्रा में हार्मोंस निकल रहे हैं, यह खून की जांच से पता लगाया जाता है। खून की जांच तीन तरह से की जाती है, टी-3, टी-4 और टीएसएच से। इसमें हार्मोंस के स्तर का पता लगाया जाता है। मरीज की स्थिति देखकर डॉक्टर तय करते हैं कि उसको कितनी मात्रा में दवा की खुराक दी जाए।
हायपरथायरॉइड के मरीजों को थायरॉइड हार्मोंस को ब्लॉक करने के लिए अलग किस्म की दवा दी जाती है। हाइपोथायरॉयिडज्म का इलाज करने के लिए आरंभ में ऐल-थायरॉक्सीन सोडियम का इस्तेमाल किया जाता है, जो थायरॉइड हार्मोंस के स्त्रव को नियंत्रित करता है। तकरीबन 90 प्रतिशत मामलों में दवा ताउम्र खानी पड़ती है। पहली ही स्टेज पर इस बीमारी का इलाज करा लिया जाए तो रोगी की दिनचर्या आसान हो जाती है।
थॉयराइड में परहेज
हाइपोथायरॉइड में हार्मोंस का बहुत कम स्राव होता है जिसकी वजह से रोगी को कमजोरी, सुस्ती, मोटापा, कब्ज, थकावट, भूख न लगना आदि की शिकायत शुरू हो जाती है पर कुछ बातों का ध्यान रखकर आप इस बीमारी से निजात पा सकती हैं। आइए जानें विशेषज्ञों की राय-
* मिर्च-मसालेदार, तली-भुनी, डिब्बाबंद चीज, मैदे की बनी चीजें, फास्ट फूड आदि का कड़ाई से परित्याग करें।
* मद्यपान, धूम्रपान, गुटका, तंबाकू, चाय, काफी, चॉकलेट आदि चीजों को छोड़कर ही इस रोग से स्थाई छुटकारा मिल सकता है।
- गेहूं, चना, सोयाबीन तथा जौ की मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करें। इस रोग में बहुत प्रोटीनयुक्त आहार न लें। छिल्के वाली दालों का सेवन भी बहुत लाभकारी रहेगा।
* सभी फल (केला छोड़कर), हरी सब्जी, तथा थोड़ा सा ड्राई फ्रूट को अपने खाने में शामिल करें। अनाजों का सेवन भोजन की मात्रा में कम करें।
* अंकुरित अनाज, मट्ठा या छाछ, सलाद रोजाना लें। दिन में अधिक बार कुछ न कुछ खाते रहने की आदत से बचें।
* निठल्ले बैठने रहने की आदत को छोड़ कर काम में व्यस्त रहने की आदत बनाएं।
* इस रोग में तनाव, कुंठा, क्रोध को अपने सिर पर लादे नहीं बल्कि इनका सूझबूझ तथा सामान्य बुद्धि से हल निकालें। अपनी जीवन शैली को बदलने का प्रयास करें।
* अपनी दिनचर्या में योग को शामिल करें। इस रोग में भस्त्रिका, कपालभाति एवं अग्निसार प्राणायाम काफी कारगर है। इनसे चयापचय गति बढ़ती है तथा सुस्ती, आलस्य तथा थकावट को दूर करने में उपयोगी सिद्ध होता है।
* चिंता, तनाव, भय, असुरक्षा, संवेदनशीलता तथा निराशा आदि जैसे कारण जो इस रोग के लिए प्रमुख उत्तरदायी है, को ध्यान, योगनिद्रा एवं शिथिलीकरण से स्थायी रूप से दूर किया जा सकता है। इनका प्रतिदिन आधे घंटे है।
* इस रोग को छुप-छुप कर शरीर में घर बनाने से रोकने का सबसे जरूरी उपाय यह है कि इसके लक्षणों का जरा सा भी संदेह होने पर अपने चिकित्सक से परामर्श कर इसकी जांच कराएं। इस रोग की पुष्टि होने पर हर्मोन संतुलन के यथासंभव उपाय अपनाएं, समयानुसार व्यायाम और परहेज जरूर करें।