अनुभव से प्राप्त मान्यताएँ
नाभि ही शरीर का केंद्र है
। बीमारी चाहे कोई भी हो, उसके साथ-साथ नाभि के आस-पास कुछ खास जगहों पर दबाएँ या बिना दबाए ही दर्द महसूस होगा। उन दर्दों को ठीक कर दें तो बीमशी अपने आप ठीक होती जाएगी।
शरीर पर खास जगहों पर निश्चित समय के लिए निर्धारित क्रम में दबाव डालकर हम नाभि के इन दर्दों को निकाल सकते हैं। इस प्रकार से या अन्य खास तरीकों से दबाने या घिसने से हम शरीर की ग्रंथियों को क्रम से उकसाकर विभिन्न रसायन बना सकते हैं। इन तरीकों से जो ग्रंथियां पहले काम नहीं कर रही थीं, वे ठीक से काम करने लगेंगी और बीमारी ठीक हो जाएगी।
फेफड़े, गुर्दे एवं पाचन संस्थान ठीक रहे तो कोई बीमारी आ ही नहीं सकती। बड़ी से बड़ी बीमारियाँ आने का मुख्य कारण है भोजन का ठीक से न पचना या उसका ठीक से अवशोषित न होना। खाना ठीक से न पचने से खाए हुए पदार्थ हमें मल में अनपचे ही दिखाई देंगे। कैल्सियम एवं अन्य मिनरल्स तथा विटामिन्स का अवशोषण नहीं होगा तो कैल्सियम की कमी से मांसपेशियाँ तथा ग्रंथियाँ ठीक से काम नहीं करेंगी। जैसे पहले लिखा है- शरीर में बीमारी आने के तीन मुख्य कारण हैं ग्रंथियों का ठीक प्रकार से काम
न करना या उन ग्रंथियों के रसायनों का कम ज्यादा होना या उनका उचित जगह पर या उचित
मात्रा में न पहुँचाना। मूल कारण को ठीक करने से बीमारी अपने आप ठीक होगी।
कई बीमारियों में 'Pan' के प्वाइंट में दर्द पाया है। हम 'Pan' के प्वाइंट को विभिन्न तरीकों से
उकसाकर कई बीमारियों को ठीक कर सकते हैं। अनुभव से यह पता चला है कि बाई कमर के नीचे Mu° प्वाइंट में दर्द का होना रक्त में पानी की कमी यानी एसिड बढ़ने के लक्षणों से जुड़ा है। जबकि बाई कमर के नीचे Liv° प्वाइंट में
दर्द का होना रक्त में पानी ज्यादा यानी एल्कली बढ़ने के लक्षणों से जुड़ा है। एसिड व एल्कली का बैलेंस बिगड़ने से तरह तरह के रोगों की समस्या उत्पन्न हो जाती है। एसिड बढ़ने से शरीर के बाएँ हिस्से में दर्द हो सकता है। एल्कली बढ़ने से मांसपेशियाँ कड़क हो जाएँगी तथा भयंकर बीमारियाँ आती हैं।
वे मान्यताएँ, जो शरीर विज्ञान के तथ्यों पर आधारित हैं शरीर में कई मुख्य रसायनों का निर्माण दो या से अधिक जगहों (अंगों) में होता है। एक जगह
के बिगड़ जाने से उन रसायनों का निर्माण नहीं होगा तब हम दूसरी जगह को न्यूरोथरैपी द्वारा उकसाते हैं, जिससे वह रसायन निकलती है और बीमारी ठीक होती है। विभिन्न अंत: स्रावी ग्रंथियों की गड़बड़ियों को हम पिट्यूटरी को उकसाकर ठीक कर सकते हैं,
क्योंकि पिट्यूटरी ग्रंथि का प्रभाव कई अंत: स्रावी ग्रंथियों पर पड़ता है।
सभी हार्मोस के कच्चे पदार्थ तीन ही तत्वों से बने हैं कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) टाइरोसिन,
अमीनो एसिड (Tyrosine amino acid) एवं प्रोटीन। इन तीन चीज़ों के ठीक से बनने एवं अवशोषित होने के लिए पाचन संस्थान यानी पाचन तंत्र का ठीक होना ज़रूरी है, जिसे हम न्यूरोथरैपी द्वारा ठीक करते हैं।
मस्तिष्क के प्रमुख रसायनों में से किसी एक की भी कमी होने से सेंट्रल नर्वस सिस्टम बिगड़
जाता है। तब हम न्यूरोथरैपी द्वारा आँत के नर्वस सिस्टम को उकसाकर मस्तिष्क की उस बीमारी
को ठीक करते हैं। उदाहरण-पॉर्किसन, मोटर न्यूरान डिसऑडर इत्यादि। विटामिन शरीर में नहीं बनते। उन्हें खाने से ही प्राप्त करना है। कुछ खास विटामिन की कमी के साथ पीठ के निचले भाग में कुछ दर्द भी महसूस होता है। जैसे ही हम न्यूरोथरैपी उपचार द्वारा पाचन संस्थान को ठीक और उन दर्द के प्वाइंट से दर्द निकालने लगते हैं, विटामिनों की कमी से आए लक्षण कम होने लगते हैं। इस प्रकार हम विटामिन की कमी की बीमारियों को बिना दवा के ठीक करते हैं।
जब बाल्य ग्रंथियाँ (Thymus glands) की कोशिकाएँ अपने शरीर की कोशिकाओं को ही मारने लगती हैं तो उसे 'ऑटो इम्यूनिटी' कहते हैं। इससे आई बीमारियों को 'ऑटो इम्यून डिसऑर्डर' कहते हैं। ऐसी बीमारियों में मरीजों को स्टेरॉइड्स की दवाइयाँ दी जाती हैं, जिनके काफी दुष्परिणाम होते हैं। न्यूरोथैरेपी का कंट्रोल एडरीनल ग्रंथि पर हैं, जो कि बाल्य ग्रंथियों (Thymus) को दबाता है तो न्यूरोथरैपी में ऐसी बीमारियों को ठीक करने के लिए हम एडरीनॅल कॉर्टक्स को उकसाकर शरीर में ही स्टेरॉइड्स बनाते हैं, जिसके दुष्परिणाम नहीं होते।
योग से हमें पता है कि दाईं और बाई नाक से श्वास लेने में फर्क है। वैसे ही न्यूरोथरैपी की अनुपम खोज है कि दोनों अंडाशय, दोनों गुर्दों एवं एडरीनल ग्रंथि के दोनों मेडुला (यानी अंदरूनी भाग) ये अलग-अलग काम करते हैं। इसके कुछ उदाहरण हैं