क्या आप गैस से परेशान हैं?
पेट में गैस एवं खट्टी डकारें आम समस्या बन गई है। पेट की बीमारियों के अतिरिक्त गैस बनने की कई और भी स्थितियां हंै, जिनकी वजह से लोग परेशान रहते हैं।
किन बीमारियों में गैस बनती है
पाचन तंत्र की कई पुरानी बीमारियां जैसे पेप्टिक अल्सर, अमीबायोसिस, डायरिया, अपच, गैस्ट्राइटिस के कारण कई मरीजों में गैस बनने की शिकायत होती है। अमाशय में लगभग 0.4 फीसदी हाइड्रोक्लोरिक एसिड होता है, जो भोज्य पदार्थ के बडे अंश को छोटे-छोटे भाग में तोड़ने के काम आता है।
इसकी मात्रा में अचानक वृद्धि होने से अधिक मात्रा में गैस बनने लगती है, जो आगे चलकर अमाशय की भीतरी दीवार को नुकसान पहुंचाती है और धीरे-धीरे घाव बन जाती है। इसे पेप्टिक अल्सर कहते है। इस स्थिति में भी गैस बनने की मात्रा में अचानक वृद्धि हो जाती है और पेट फूलने के साथ-साथ पेट भराभरा-सा लगता है। कई तरह की संक्रामक बीमारियों जिसमें अमाशय की दीवार में सूजन हो जाती है तब भी भोजन को पचाने में सहायक अम्ल के स्राव में परिवर्तन हो जाता है और अधिक मात्रा में गैस का निर्माण होने लगता है।
पाचन तंत्र में भोजन को पचाने वाले कई ऎसे एंजाइम्स होते हैं, जिनमें कमी हो जाने की वजह से भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है। परिणाम स्वरूप गैस की शिकायत होने लगती है। लैक्टेज नामक एंजाइम भोजन में पाए जाने वाले लैक्टोज को पचाने में सहायक होता है, जिसकी कमी से इसका पाचन ठीक से नहीं हो पाता है और गैस बनने लगती है। वे मरीज, जिनमें लैक्टेज एंजाइम की कमी होती है, दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ को पूरी तरह पचा नहीं पाते हैं।
ये है इलाज
यदि किसी बीमारी के कारण गैस बनती है, पेट फूल जाता है तथा पेट में दर्द होने लगता है, तो उसका इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक से कराना चाहिए। जिन्हें पेट की कोई बीमारी नहीं है फिर भी पेट में गैस बनने की शिकायत रहती है, उन्हें तीन बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। पहली बात- किसी खास भोज्य पदार्थ के लेने पर ही तो कहीं गैस नहीं बनती है। यानी उससे एलर्जी तो नहीं है, ऎसी स्थिति में तुरंत उसका सेवन बंद कर देना चाहिए।
दूसरी बात- कहीं आप अधिक गैस बनाने वाला भोजन तो नहीं करते हैं, जैसे- सेम, मटर, केक, कार्बोनेट युक्त सामग्री, खट्टा फल, फूलगोभी, बंदगोभी, काजू, मुनक्का, सुपारी आदि। इनका सेवन भी बंद कर दें। तीसरी बात- आप नियमित रूप से भोजन करने की आदत डालिए। समय पर नाश्ता तथा भोजन करने पर गैस की शिकायत अपने आप बंद हो जाएगी। भोजन को चबा चबाकर इत्मिनान से करना चाहिए।
ज्यादा तेल, मिर्च, तला हुआ मसाला तथा अधिक गरिष्ठ भोज्य पदार्थ नहीं करना चाहिए। भोजन में हरी सब्जी का सेवन करें। जितना खाने में पेट भर जाए, उससे थोड़ा कम खाना खाए तो भोजन पचाने में आसानी होती है। भोजन करने के आधा-एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए। खाना खाने के तुरंत बाद काम करने नहीं बैठें। जो शारीरिक श्रम नहीं करते हैं, पेट में गैस बनने की शिकायत रहती है।
यदि पेट तथा हाजमा ठीक होगा तो आप शारीरिक तथा मानसिक दोनों तौर पर स्वस्थ रहेंगे। हाजमा ठीक नहीं रहने पर अन्य बीमारियों के साथ खून की कमी हो जाएगी और कमजोरी, दिल की धड़कन तीव्र होना, सिर चकराना, काम में मन नहीं लगना, मानसिक तनाव चिंता हो जाएगी। शारीरिक प्रतिरोध क्षमता घट जाएगी।
क्यों बनती है?
केवल बीमारी की स्थिति में ही पेट में गैस नहीं बनती। बीमारी तो एक कारण है ही, इसके अलाव भी भोजन करते समय बहुत बड़ी मात्रा में (2 से 6 फीसदी) हवा पेट में जाती है। आंत में पाए जाने वाले विभिन्न बैक्टीरिया तथा रक्त संचालन द्वारा भी गैस पाचन तंत्र में पहुंचती है, जो डकार द्वारा मुंह से बाहर बीच-बीच में निकलती रहती है। इससे मरीज को कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन इसका जो भाग नहीं निकल पाता है, अमाशय तथा आंत में रह जाता है और बाद में पेट फूलने का कारण बनती है। कई बार तो पेट में दर्द होने लगता है।
पेट में गैस एवं खट्टी डकारें आम समस्या बन गई है। पेट की बीमारियों के अतिरिक्त गैस बनने की कई और भी स्थितियां हंै, जिनकी वजह से लोग परेशान रहते हैं।
किन बीमारियों में गैस बनती है
पाचन तंत्र की कई पुरानी बीमारियां जैसे पेप्टिक अल्सर, अमीबायोसिस, डायरिया, अपच, गैस्ट्राइटिस के कारण कई मरीजों में गैस बनने की शिकायत होती है। अमाशय में लगभग 0.4 फीसदी हाइड्रोक्लोरिक एसिड होता है, जो भोज्य पदार्थ के बडे अंश को छोटे-छोटे भाग में तोड़ने के काम आता है।
इसकी मात्रा में अचानक वृद्धि होने से अधिक मात्रा में गैस बनने लगती है, जो आगे चलकर अमाशय की भीतरी दीवार को नुकसान पहुंचाती है और धीरे-धीरे घाव बन जाती है। इसे पेप्टिक अल्सर कहते है। इस स्थिति में भी गैस बनने की मात्रा में अचानक वृद्धि हो जाती है और पेट फूलने के साथ-साथ पेट भराभरा-सा लगता है। कई तरह की संक्रामक बीमारियों जिसमें अमाशय की दीवार में सूजन हो जाती है तब भी भोजन को पचाने में सहायक अम्ल के स्राव में परिवर्तन हो जाता है और अधिक मात्रा में गैस का निर्माण होने लगता है।
पाचन तंत्र में भोजन को पचाने वाले कई ऎसे एंजाइम्स होते हैं, जिनमें कमी हो जाने की वजह से भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है। परिणाम स्वरूप गैस की शिकायत होने लगती है। लैक्टेज नामक एंजाइम भोजन में पाए जाने वाले लैक्टोज को पचाने में सहायक होता है, जिसकी कमी से इसका पाचन ठीक से नहीं हो पाता है और गैस बनने लगती है। वे मरीज, जिनमें लैक्टेज एंजाइम की कमी होती है, दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ को पूरी तरह पचा नहीं पाते हैं।
ये है इलाज
यदि किसी बीमारी के कारण गैस बनती है, पेट फूल जाता है तथा पेट में दर्द होने लगता है, तो उसका इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक से कराना चाहिए। जिन्हें पेट की कोई बीमारी नहीं है फिर भी पेट में गैस बनने की शिकायत रहती है, उन्हें तीन बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। पहली बात- किसी खास भोज्य पदार्थ के लेने पर ही तो कहीं गैस नहीं बनती है। यानी उससे एलर्जी तो नहीं है, ऎसी स्थिति में तुरंत उसका सेवन बंद कर देना चाहिए।
दूसरी बात- कहीं आप अधिक गैस बनाने वाला भोजन तो नहीं करते हैं, जैसे- सेम, मटर, केक, कार्बोनेट युक्त सामग्री, खट्टा फल, फूलगोभी, बंदगोभी, काजू, मुनक्का, सुपारी आदि। इनका सेवन भी बंद कर दें। तीसरी बात- आप नियमित रूप से भोजन करने की आदत डालिए। समय पर नाश्ता तथा भोजन करने पर गैस की शिकायत अपने आप बंद हो जाएगी। भोजन को चबा चबाकर इत्मिनान से करना चाहिए।
ज्यादा तेल, मिर्च, तला हुआ मसाला तथा अधिक गरिष्ठ भोज्य पदार्थ नहीं करना चाहिए। भोजन में हरी सब्जी का सेवन करें। जितना खाने में पेट भर जाए, उससे थोड़ा कम खाना खाए तो भोजन पचाने में आसानी होती है। भोजन करने के आधा-एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए। खाना खाने के तुरंत बाद काम करने नहीं बैठें। जो शारीरिक श्रम नहीं करते हैं, पेट में गैस बनने की शिकायत रहती है।
यदि पेट तथा हाजमा ठीक होगा तो आप शारीरिक तथा मानसिक दोनों तौर पर स्वस्थ रहेंगे। हाजमा ठीक नहीं रहने पर अन्य बीमारियों के साथ खून की कमी हो जाएगी और कमजोरी, दिल की धड़कन तीव्र होना, सिर चकराना, काम में मन नहीं लगना, मानसिक तनाव चिंता हो जाएगी। शारीरिक प्रतिरोध क्षमता घट जाएगी।
क्यों बनती है?
केवल बीमारी की स्थिति में ही पेट में गैस नहीं बनती। बीमारी तो एक कारण है ही, इसके अलाव भी भोजन करते समय बहुत बड़ी मात्रा में (2 से 6 फीसदी) हवा पेट में जाती है। आंत में पाए जाने वाले विभिन्न बैक्टीरिया तथा रक्त संचालन द्वारा भी गैस पाचन तंत्र में पहुंचती है, जो डकार द्वारा मुंह से बाहर बीच-बीच में निकलती रहती है। इससे मरीज को कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन इसका जो भाग नहीं निकल पाता है, अमाशय तथा आंत में रह जाता है और बाद में पेट फूलने का कारण बनती है। कई बार तो पेट में दर्द होने लगता है।
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